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Showing posts from January, 2017

Spondylosis (Cervical/Thoracic/Lumbar) and PID.

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The Vertebral disc lesions affect nearly 80% of the people.Spondylosis (Cervical/Thoracic/Lumbar) and PID. It is the most common causes of job related disability leading to missed work and the second most common neurological ailment. Raised incidence of these disorders are observed probably resulted from extensive vehicular riding, uneven roads, irregular dietetic habits , irregular postures, insufficient sleep, injuries to vertebras, leads to loss of cushion action in between vertebral bodies. Many times patients get moderate to severe pain in lumbar or cervical region. It affects day to day activities and also leads to incurable problems like spondylolithiasis, spinal canal stenosis, sacralization, CaudaEquina Syndrome etc. In charak samhita sutra sthan the  Samshodhan Chikitsa has been mentioned. Ayurveda management of vertebral disc lesions by panchkarma  therapies and herbomineral formulations.This attempt possibly finds solutions which can delay or even prevent surgical inte

पुष्पधन्वा रस बल्य और वाजीकारक।

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यह रसायन बल, वीर्य, कामोत्तेजक और शक्तिवर्धक एवं उत्तम वाजीकारक है। इसके नियमित सेवन से वीर्यस्राव, वीर्य विकार, ध्वजभंग, बन्ध्त्व दोष आदि रोग नष्ट होते है। यह रस स्त्रियों के बीजाशय (uterus) के योग्य विकास न होने से  उत्पन्न बन्ध्त्व दोष और पुरुषों के शुक्रस्त्राव की दुर्बलता से पैदा हुई नपुंसकता की अव्यर्थ औषधि है । ज्यादा स्त्री प्रसंग करने से शुक्र (वीर्य ) पतला हो जाता है । ऐसे समय में उत्तेजना ( काम की इच्छा ) होने पर सिर में दर्द होने लगता है और यह दर्द तब तक होता रहता है; जब तक वीर्यस्राव नहीं हो जाता है । जैसे पुरुषो को कभी मनोव्याघात या और भी किसी आकस्मिक दुर्घटना के कारण स्त्री-प्रसंग करने की इच्छा नहीं होती; उसी तरह कभी कभी स्त्री को भी यह शिकायत हो जाती है।       इस रसायन में :- रस सिंदूर - बलवर्धक, उत्तेजक और योगवाही है। नाग भस्म - स्तम्भक, बल्य और मेहनाशक है। अभ्रक भस्म - मानसिक कष्ट से उत्त्पन्न हुए मनोविकार नाशक, धातुओं को परिपुष्ट करनेवाला, योगवाही और रसायन है।

चश्मा उतारने और नेत्र ज्योतिवर्धक योग

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चश्मा उतारने और नेत्र ज्योतिवर्धक योग, इस योग को कुछ समय लेते  रहने से ही आखों की सभी समस्या दुर हो जाती है। विधि :- बडी हरड़ 10  ग्राम, बहेडा 20 ग्राम, आवंला 30 ग्राम, मूलहठी 3 ग्राम, वंशलोचन 3 ग्राम, पीपर 3 ग्राम इन सब का  अलग-अलग बनाया चुर्ण में 150 ग्राम मिश्री मिला लें । फिर इस मिश्रण 10 ग्राम देशी घी मिला लें । आवश्यकतानुसार शहद मिलाए कि चाटने अवलेह अर्थात चटनी बन जाये । इस अवलेह को काँच की बरनी में रख लें । इसे 6 ग्राम रात को सोते समय लें।

भस्मक रोग या अधिक खाना (OVEREATING)

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भस्मक रोग एक ही प्रकार का ऐसा रोग है जिसमे रोगी हर समय खाता रहता है, रोगी जितना भी खाना खा ले उसे ऐसा लगता है कि उसने अभी तो कुछ भी नहीं खाया है और वह  बहुत अधिक खाने लगता है। यह किसी भी व्यक्ति ( युवा, बूढे, बच्चे, और महिला  ) और किसी भी उम्र में हो सकता है। इस रोग के उपचार हेतु भस्मकनाशक चूर्ण का प्रयोग करे । भस्मकनाशक चूर्ण विधि :-                                        हरड़, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, बायबिडंग, पीपल, मिश्री और अपामार्ग के बीज इन ८ औषधियों  को समभाग मिलाकर बारीक़ चूर्ण करें लें। मात्रा :- ५ ग्राम  से  १० ग्राम तक शहद और घृत विषम मात्रा में दिन में दो बार चाट ले। नोट :- यह चूर्ण अमाशय पर अवसादक असर पहुँचता है, जिससे बढ़ी हुई अग्नि कम होकर भस्मक रोग शांत हो जाता है।