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Showing posts from November, 2016

Tips for Piles (बवासीर में मस्से मोटे एवं श्वेतवर्ण है ?)

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कफ प्रधान बवासीर {अर्श } में मस्से मोटे एवं श्वेतवर्ण के होते है। उनमें पीड़ा अधिक होती हो, चिपचिपे {लसदार } झागदार  दस्त हो, एक बार शौच जाने पर पेट में भारीपन एवं गुड़गुड़ाहट और पुनः शौच जाने की शंका बनी रहती हो आदि लक्षणों में क्रव्याद रस को शुंठी चूर्ण और सैंधव नमक मिला मट्ठे के साथ सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।  

त्रिफला चूर्ण है उत्तम रसायन एवं मृदु विरेचक ।

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त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि:-  हरड़ का छिलका, बहेड़े का छिलका, आँवला गुठली रहित - प्रत्येक 1-1 भाग लेकर सूक्ष्म चूर्ण करके सुरक्षित रखे । गुण एवं उपयोग:- यह चूर्ण उत्तम रसायन एवं मृदु विरेचक है । यह चूर्ण अग्नि प्रदीपक, कफ-पित्त और कुष्ठ नाशक है। इस चूर्ण का प्रयोग करने से बीसो प्रकार के प्रमेह रोग, मूत्र का अधिक आना, मूत्र में गंदलापन होना, शोथ, पांडुरोग और विषम ज्वर में उपयोगी है। विषम भाग शहद और घी के साथ सेवन करने से नेत्र रोग में अपूर्व लाभ होता है। शुद्ध गन्धक और शहद के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के रक्तविकार और चर्म रोग नष्ट होंते है। मात्रा और अनुपान :-  3 -8 माशा तक, रात को सोते समय गरम जल से या दूध के साथ अथवा विषम भाग घी और शहद के साथ ।

सरसों का चिकित्सीय प्रयोग । ( Yellow sarson)

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सरसों  ब्रास्सीका कांपेस्ट्रिस लिनिअस वेरा. सरसोंन प्रेंन ( Brassica campestris Linn. var. sarson prain ) सर्दियों में तिलहन की फसल के रूप में बड़े पैमाने पर सरसो की खेती की जाती है। संस्कृत में - सर्षप , अंग्रेजी में - Yellow sarson. गुण :- सरसों  के मुलायम ताजा पत्तों का साग चरपरा, मूत्र तथा मल को निकलनेवाला, भारी , पाक में खट्टा, जलन पैदा करनेवाला, गरम, तेज होता है।  सरसों के बीज बड़े गुणकारी है। ये पाचक, चरपरे, स्निग्ध तथा स्वाद उत्तेजक होते है। सरसों का तेल ठंडा, गरम, दर्दनाशक, विषाणुनाशक तथा कृमियों को नष्ट करनेवाला है। उपयोग :-  1 कोमल पत्तो की सब्जी तथा भजिया बनाई जाती है। 2 पंजाब में सरसो का साग और मक्का की रोटी जगत प्रसिद्ध है। 3 सरसो के दाने पीसकर अचार आदि में डाले जाते है। 4 सरसों का तेल सब्जी आदि छोंकने के साथ साथ प्रकाश के लिये दीपको में जलाया जाता है। 5 तेल निकालने के बाद बची खली पशुओं का पोस्टिक आहार है । औषधीय उपयोग :- आयुर्वेदिक चिकित्सा में सरसों के समस्त भाग एवं इसके तेल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है । 1 शारीरिक स्फूर्ति - सरसो के तेल की मालिश

इन ठंडे मौसम में क्या क्या करे ?

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आयुर्वेद के अनुसार 6 ऋतु होती है- 1 बसंत  -  चैत्र तथा वैशाख मास 2 ग्रीष्म  -  ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास 3 वर्षा   -  श्रावण तथा भाद्रपद मास 4 शरद   - आश्विन तथा कार्तिक मास 5 हेमन्त -  मार्गशीर्ष तथा पौष मास 6 शिशिर - माघ तथा फाल्गुन मास वर्तमान समय हेमन्त और फिर शिशिर का आने वाला है, ऐसे में शरीर की अग्नि तीव्र रहती है । व्यायाम का अच्छा समय वैसे तो व्यायाम किसी भी मौसम में किया जा सकता है, किन्तु हेमन्त और शिशिर में पूर्ण बल शक्ति तक व्यायाम कर सकते है। हेमन्त ऋतु :-  इस ऋतु में कोहरा पड़ता है तथा दिशाए धूल तथा धुएँ से भरी हुई प्रतीत होती हैं। जलाशयों के पानी पर पपड़ी- सी जम जाती है । यह जठराग्निवर्धक तथा प्रत्येक पदार्थ के स्वाद में वृद्वि करती है । इसमें भोजन सरलता से पच जाता है। इस ऋतु में गेहूँ, चावल, तिल,दूध, मलाई, गुड़, चीनी, मिश्री, तैल, घृत, दही, मट्ठा, तोरई, खीरा आदि का सेवन हितकर रहता है । अपथ्य (जिनका प्रयोग नही करना चाहिए) सत्तू, कसेरू, उड़द, जौ, पुराना अन्न, भैंस का दूध, सिंघाड़ा तथा आलू का सेवन, बहुत कम भोजन एवं रुक्ष, कषाय, शीतल तथा वातकारक पदार्थो का सेवन अपथ्य है

दुबलापन (Thinness)

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कारण:-  अधिक उपवास, वमन, विरेचन, शोक तथा मल मूत्र के वेगो को रोकना, अति मैथुन, अल्प भोजन, चिंता तथा भय आदि शरीर की कृशता (दुबलेपन ) के कारण है। लक्षण :-  शारीरिक शक्तिहीनता में शरीर स्वाभाविक से अधिक पतला या कमजोर हो जाता है। अत्यधिक दुबले मनुष्य को अशक्ति के अतिरिक्त अनेक प्रकार के रोग भी अपना शिकार बना लेते है। चिकित्सा :-   1 पीले बादाम की गिरी, निशास्ता, कतीरा तथा चीनी इन्हें समभाग मिलाकर रख लें तथा इनमें से नित्य 1 तोला दूध के साथ सेवन करें तो कृशता दूर हो जाती है । 2 काली मिर्च 3 तोला, सोंठ 3 तोला, छोटी पीपल 6 तोला, तिल 12 तोला तथा अखरोट गिरी 15 तोला इन सब को पीस कर छान कर रख लें । फिर 1.5 सेर चीनी की चाशनी पकाकर उसमे उक्त दवाई का चूर्ण डालकर उतार लें। चाशनी के ठंडा हो जाने पर, उसमे 1 पाव शहद मिलाकर रख लें ।  4 माशा रोजाना सेवन करे ।

विरेचन चूर्ण से पेट रहे हमेशा दुरुस्त । ( Constipation )

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Constipation is a common problem in present time. It means either going to the toilet less often than usual to empty the bowels, or passing hard or painfully stools (feces). Constipation may be caused by not eating enough fiber, or not drinking enough fluids. आज कल पेट साफ न रहना, आम समस्या बनती जा रही है । खान पान में परहेज न रखना और पर्याप्त फाइबर युक्त भोजन  तथा तरल पदार्थो की कमी रखना, जिसकी वजह से शौच करते समय कठिनाई या मल का अवरोध । मल त्याग करते समय होने वाली कठिनाई ही कब्जियत कहलाती है। शौच करने के कुछ समय पश्चयात फिर से शौच या मल का वेग आना भी कब्जियत की निशानी है। इस समस्या को जड़ से खत्म करता है ये विरेचन चूर्ण। विरेचन चूर्ण बनाने की विधि :-  सनाय, गुलाब के फूल, हरड़, बहेड़ा, आँवला, सब 3-3 तोला, बादाम की गिरी तथा कुलफा के बीज 1-1 तोला और शुद्ध जमालगोटा 3 माशा इन्हें कूट पीस कर महीन चूर्ण करे। मात्रा :- 1-2 माशा चूर्ण, 3 माशा मिश्री में मिलाकर रात को सोते समय ले तथा ऊपर से गरम दूध या गरम पानी ले । यह चूर्ण नये और पुराने कब्जियत को खत्म कर आमाशय और आंतों को शुद्ध कर

अपने लिवर ( LIVER ) का रखे ख्याल।

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In over body the liver is an essential that has many function in the body, making proteins and blood clotting factors. Liver manufacturing cholesterol and triglycerides, glycogen synthesis and bile production. लिवर हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। लिवर कार्बोहाइड्रेट्स को ग्लाइकोजन के रूप में जमा करके रखता है, और जरूरत होने पर तुरन्त ही इसे ग्लूकोज के रूप में स्त्रावित कर देता है। लिवर नुकसानदायक पदार्थो को निष्क्रिय कर देता है और प्रोटीन पैदा करता है जो हमें संक्रमण और रक्तस्त्राव से बचाता है। कारण :- उड़द, कुल्थी, सरसो का साग आदि विदाही तथा भैंस के दूध का दही आदि अभिष्यन्दी पदार्थ के सेवन से रक्त और कफ दूषित होकर लिवर ( जिगर ) को वृद्धि करते है। मीठे, चिकने पदार्थ का अधिक सेवन, दूषित स्थान में रहना, अधिक भोजन के बाद तेज सवारी तथा अधिक परिश्रम, अधिक व्यायाम आदि लिवर रोग के कारण होते है। लक्षण :- यकृत की वृद्धि होने अथवा सिकुड़ जाने पर उसमें दर्द होने लगता है, मल रुक जाता है अथवा थोड़ी मात्रा में कीचड़ जैसा निकालता है। पुरे शरीर या मुख्यतः आँखों का रंग पीला हो जाता है। जी

क्या आप पेट के कीड़ो ( Worm )से परेशान है ?

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Does your child or you have trouble with stomach worms ? In children and human krimi or worms is one of the most common and important aspect causing health problems. The common complaints :  low digestive  ( पाचन शक्ति की )    Abdominal problem ( पेट दर्द )  Nausea ( जी मचलाना )  Vomiting ( उल्टी )  Constipation ( कब्जियत )   Diarrhea ( दस्त )  Itching at anus or whole body itching ( गुदा या पुरे शरीर में खुजली )  White patches on the face ( चेहरे पर सफ़ेद दाग का होना )  Excessive dry skin ( त्वचा का शुष्क होना )  Weakness ( दुर्बलता )  Teeth biting ( दांतो का कटकटाना )  Bed wetting ( बिस्तर का गिला करना )  Boils over skin ( त्वचा पर फोड़े )  Headache ( सिर  दर्द )  Picking of Nose ( नाक का बहना ).  इन सारी  समस्या को चंद दिनों में ठीक करे।  यह है उपाय त्रिकटु, त्रिफला,निशोथ,इंद्र जौ, नीम की अंतर छाल, बच और खैरसार इन ११ औषधियों को समभाग ,मिला ले।  इनमे से २-२ तोले का क्वाथ कर गौ मूत्र अर्क के साथ दिन में २ बार पीजिए संपूर्ण जाती के कृमि नष्ट हो जाते है   छोटे क

अब बार बार पित्ती का उठना बंद करे। (Tips of Urticaria)

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Urticaria is a skin problem. A rash of round, red weals on the skin which itch intensely,caused by an allergic reaction, typically to specific foods etc. पित्ती Urticaria :- शरीर की त्वचा पर जलन या बिना जलन वाले, लाल उभार लिये , खुजली वाले चकत्ते होना पित्ती या अर्टिकेरिया कहलाता है। पित्ती के कारणों में दवा के साइड इफ़ेक्ट, एलर्जी, कीट-पतंगों का डंक, सूरज की तेज धूप, संक्रमित पानी, बहुत ठंडी हवा लगना आदि। जसद ( यशद )भस्म शीतपित्त नया  और पुराना रोग, दोनों पर ही दी जाती है । रोग चाहे जितना उग्र हो, या धातुओ में लीन हो गया हो, जसद भस्म के सेवन से थोड़े ही समय मे दूर हो जाता है । शीतपित्त पीड़ितों को चाहिए कि कच्चा दूध, अति गरम दूध - चाय तथा अधिक मिर्च का सेवन न करें।  साधारण गरम दूध और मर्यादित मात्रा में चाय और मिर्च मसाले ले।  मात्रा :- १ से २ रत्ती (१२५ TO 2250 मि ग्रा ) दिन में दो बार मक्खन - मिश्री से।  DOSE :- 125 MG TO 250 MG BD WITH BUTTER AND MISHRI.

क्या आप खाँस खाँस के परेशान है ? (Cough)

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क्या आप खाँस खाँस  के परेशान है, तो चंद्रामृत रस अपनाओ। चंद्रामृत रस पांचो प्रकार की खाँसी के लिये लाभदायक है।  जिस खाँसी में खून आता हो खाँसते खाँसते दाह, प्यास एवं मूर्छा आ जाती हो,उस हालात में इस दवा का अच्छा असर होता है। यदि जीर्ण ज्वर के साथ खाँसी हो और मंदाग्नि, कास आदि की भी शिकायत हो तो इस रसायन का प्रवाल चंद्रपुटी और तालिशादि चूर्ण में मिला शर्बत गुलबनप्सा के साथ अवश्य प्रयोग करे, इससे कफ नरम होकर आसानी से निकलने लगता है।  अनुपान भेद से सभी प्रकार के कास तथा श्वास रोग में यह उत्तम लाभकारी सुप्रसिद्ध औषध है। उपयोग विधि - १ गोली शहद में मिला कर चाट ले और ऊपर से बकरी दूध, गोजिव्हादि क्वाथ, द्राक्षारिष्ट पिये। यदि खाँसी में कफ के साथ रक्त आता हे तो १ गोली इस रस को, ५ रत्ती नागकेशर चूर्ण और ५ रत्ती खून खराबे के चूर्ण के साथ मिलाकर १ तोला लाल कमल स्वरस से साथ ले। शुष्क खाँसी में मिश्री चूर्ण या मुलेठी चूर्ण के साथ मिला कर देने से शीघ्र लाभ मिलता है।    

Dyspepsia (अम्लपित्त)

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Today’s life style is completely changed by all the means our diet pattern, life styles and behavioral pattern is changed and it is not suitable for our normal physiology of digestion of body. 25 – 30 % peoples are suffering from dyspepsia. These diseases are chronic in nature and affecting to adults mostly. Patients of gastritis often results into peptic ulcer.  Gastritis and non-ulcer dyspepsia have been correlated with Amlapitta.  Madhava Nidana has given a clinical definition of Amlapitta that presence of Avipaka(Indigestion), Klama (weakness without work), Utklesha (Nausea), Amlodgara (Acid eructation’s), Gaurava (heaviness), Hrit-Kantha- Daha (Heart burn) and Aruchi (Anorexia) should be termed as Amlapitta. (M. N. 51/2) Cause (Nidana):- आहार (Food) : The first and the foremost group of etiological factors of Amlapitta may be considered as the dietary factors. विहार (Habit Factors) : To keep the health undisturbed one is required to follow the healthy code of habit

चहरे के दाग को चंद दिनों में ठीक करें ।

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जिन औरतो के चेहरे पर दाग होते हैं, उनकी सुंदरता कुरूपता में बदल जाती हैं। इसलिये उनके रोग को दूर करना बहुत जरुरी हैं। नहीं तो उनकी चिंता अंदर ही अंदर एक रोग बन जायेगी इस रोग का उपचार बड़ा सरल है कोई भी इसे बड़े आराम से कर सकता हैं। उपाय:- पपीते के छोटे टुकड़े काटकर उन दागों पर हर रोज दिन में चार बार मलते रहें। एक माह में सारे दाग साफ हो जायेंगे और आप का रूप निखर आयेगा ।

चने का सेवन खून में कोलेस्ट्रॉल घटाता है ।

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रक्त में कोलेस्ट्रॉल के परिणाम में वृद्धि हृदय रोग को बढ़ाता हैं, वह चने के सेवन से दूर हो जाता है । अतः चने का सेवन हृदय रोगों में हितकारी सिद्ध होता हैं। काला चना खून में कोलेस्ट्रॉल को प्रभावी ढंग से घटाता है और दिल के दौरे पड़ने का खतरा कम करता है । Result in increased blood cholesterol increases heart disease, it is far from gram intake. So gram intake is proven to have beneficial cardiovascular diseases. Black gram effectively reduces cholesterol in the blood and reduces the risk of heart attacks is falling.

इस मौसम में सीताफल (Custard/Suger apple) खाना ना भूले ।

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शरीर की कमजोरी को  दूर करने के लिए सीताफल ( custard apple ) एक बेहतर विकल्प हो सकता है और साथ ही यह आपकी immunity ( रोगप्रतिरोधक क्षमता ) को भी बढाता है । औषधि की तरह काम करता है, आयुर्वेद के अनुसार शीताफल शरीर को शीतलता पहुंचाता है। यह फल पित्तशामक, तृषाशामक, उल्टी रोकने वाला, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, कफ एवं वीर्यवर्धक, मांस एवं रक्त वर्धक, बलवर्धक, वात दोष शामक और हृदय के लिए लाभदायी है। -  इस फल को खाने से दुर्बलता दूर होकर शारीरिक शक्ति बढ़ती है। - सीताफल खाने से शरीर की दुर्बलता, थकान दूर होकर मांस-पेशियां मजबूत होती है। - सीताफल एक मीठा फल है जिसमें कैलोरी काफी मात्रा में होती है। यह फल आसानी से पचने वाला होने समेत पाचक और अल्सर तथा एसिडटी में लाभकारी है। - सीताफल घबराहट दूर कर हार्टबीट को सही करता है। कमजोर हृदय या उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए इसका सेवन बहुत  ही लाभदायक है। Family: - Annonaceae Binomial name: - Annona squamosa Nutritional value per 100 g (3.5 oz) Energy - 393 kJ (94 kcal) Carbohydrates - 23.64 g Dietary fiber - 4.4 g Fat - 0.29 g Protein - 2.06

इस मलहम से करे मस्सो की छुट्टी सिर्फ 7 दिन में।

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  अर्शनाशक मलहम न.1 बनाने की विधि :- वर्की हरताल और सफ़ेद कत्था इन्हें 2-2 तोला लेकर खरल में घोटें । फिर 100 बार पानी धोया हुआ 8 तोला गो घृत मिलाकर मलहम बना ले । उपयोग:- इस मलहम को दिन में 2 बार मस्सो पर लगावे ।                        अर्शनाशक मलहम नं. 2 बनाने की विधि :- अफीम 3 माशा, आक का दूध 1 माशा, जायफल1 तोला तथा धुला हुआ गाय का घी 1 तोला सब को मिलाकर, खरल पीस/घोंट कर मलहम बनावें । उपयोग :- शौच के पश्चयात दिन में 2 से 3 बार मस्सो पर लेप को लगावे ।

चमेली के चमत्कारी प्रयोग ।(Jasmine)

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चमेली के लाभ तथा उपचार प्रयोग - Jasmine tree has the botanical synonym of Plumeria acuminata Ait. This plant is commonly known as  'Chameli' in Hindi. According to Ayurvedic practice many parts of the plant are considered medicinal . The root bark of Jasmine plant is reported to be a powerful purgative and antiherpetic and is sometimes used to treat venereal sores. The medicinal herb is used to treat tumours and rheumatic pains. The latex of the plant has rubifacient and purgative properties. The latex is considered as an ingredient of external applications used to relieve itches, rheumatism and gum problems. The Jasmine flowers are considered contraceptive. The leaves of Jasmine plant are used as a febrifuge. The leaves are used in the form of a paste and applied as a poultice to relieve indolent swellings and as a rubifacient for rheumatism. आयुर्वेदिक के अनुसार औषधीय माना जाता है। चमेली  के पौधे की छाल का काढ़ा एक उत्तेजक के रूप में माना जाता है। चमेली के पौधे