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Migraine Pain (सिरदर्द)

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Herpes Simplex

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Treatment :- 1 गंधक रसायन  125 mg 2. मिश्री पाउडर   125 mg  दूध से सुबह शाम 3 गिलोय सत्       200 mg सुबह शाम 4 नीम के पत्तो का रस सप्ताह में दो बार 5 आरोग्यवर्धनि वटी  2-2-2 दिन में तीन बार ।

वासा अवलेह

कफयुक्त खाँसी जो पुरानी है , श्वास रोग , पार्श्व शूल,रक्त पित्त, बच्चों की कुकर खाँसी एवम् इस अवलेह का प्रभाव छोटी छोटी रक्त वाहिनियों पर पड़ता है । इस लिए रक्त पित्त, रक्त प्रदर खुनी बवासीर में , रक्तजकास में बकरी के दूध से प्रयोग करने पर लाभ मिलता है ।

सफ़ेद पानी का बहना (Leucorrhea)

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श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) श्वेत प्रदर को सामान्य बोलचाल भाषा में सफ़ेद पानी की शिकायत कहा जाता है । 1 कम उम्र की बालाओं को - vulvar Leucorrhea 2 तरुण उम्र में- vaginal Leucorrhea 3 गर्भवती स्त्रियों में- cervical Leucorrhea                             uterine Leucorrhea चिकित्सा :- 1 कुक्कुटाण्डत्वक भस्म 125 mg मलाई या दूध से 2 प्रदरान्तक लौह, मिश्री और घृत 1 ग्राम शहद 3 ग्राम 3 प्रदरान्तक रस  2-2 गोली आंवला स्वरस और शहद से। 4 पत्रांगासव   30 ml + 30 ml पानी भोजन के बाद । Ayurvedic cure center

मुखपाक (Stomatitis)

Stomatitis मुखपाक (मुँह के छाले) चिकित्सा :- 1 चमेली के पत्ते, गिलोय, मुन्नका, धमासा, दारुहल्दी, हरड़, बहेड़ा और आंवला को जौ कूट कर  16 गुना पानी में उबाले आधा शेष रहने पर शीतल कर कुल्ला करे । 2 कामदुधा रस    5 ग्राम     प्रवाल पिष्टी    5 ग्राम     मुक्त पिष्टी      5 ग्राम इन सब की 40 पुड़िया बना कर 1-1 सुबह शाम शहद से। 3 आमलकी रसायन   3 ग्राम सुबह शाम 4 खादिरारिष्ट  15 ml + 15 ml पानी भोजन के बाद ।

साइनस (sinusitis)

साइनस, दमा, पुराना जुखाम, सर्दी आदि ले लिए Treatment :- 1 अग्निकुमार रस    लक्ष्मीविलास रस    संजीवनी वटी   तीनों की 1-1गोली कुनकुने पानी से दिन में दो बार। 2 अभ्रक भस्म        5 ग्राम     प्रवाल पिष्टी        5 ग्राम    सितोपलादि चूर्ण   25 ग्राम     श्वास कुठार रस    10 ग्राम     इन सब की 50 पुड़िया बनाना और 1-1सुबह शाम भोजन के 1 घंटे पहले ।   

कृमि रोग (WORMS)

कृमि जो पर्वतों, वनो, ओषधियों तथा जल -प्रधान क्षेत्रों या जल में रहने वाले, जो शरीर में प्रवेश कर हमे कष्ट देते है । कृमियों से मूलतः तीन श्रेणी के रोग होते है 1 जठरांत्र तथा पोषणज विकार ( Gastrointestinal and nutritional disorder) - अतिसार , शोथ आदि 2 पाण्डु (Anaemia) 3 कुष्ठ (Leprosy and other dermatoses ) चिकित्सा :- 1 कृमिमुद्गर रस   5 ग्राम    शंख भस्म।      5 ग्राम    नवायस लौह    10 ग्राम    इन सब को मिक्स कर 20 पुड़िया बनाना 1-1 सुबह शाम शहद से 2  संजीवनी वटी 2-2 विड़गारिष्टा के साथ ।   

अग्निमांध (Digestive insufficiency)

निम्न कारण से अग्निमंद होती है :-  असम्यक आहार, असमय भोजन, अपक्व आहार, अतिमात्रा में आहार, रात्रि जागरण, अति गुरु या अति रुक्ष भोजन, लंबे समय से व्याधि, असुखकर शय्या, वेग धारण, ईर्ष्या, भय, लोभ, शोक, मद, चिंता एवम् कफकारक आहार विहार आदि । चिकित्सा :- 1 अग्नितुण्डी    500 मिग्रा     क्रव्याद रस   225 मिग्रा     शंख भस्म।   500 मिग्रा      मिला कर दिन में दो बार शहद से 2 चित्रकादि वटी 2-2 सुबह शाम भोजन के पहले 3 द्राक्षारिष्ठ 20 ml और 20ml पानी भोजन के बाद।

श्वासरोग (अस्थमा Bronchial asthma)

श्वास कई व्याधीयो का एक लक्षण मात्र हो सकता है अथवा यह कई अन्य व्याधि का प्रधान एवम् एकमात्र लक्षण भी हो सकता है जैसा कि तमक श्वास रोग में होता है। लाक्षणिक दृष्टि से तमक श्वास Bronchial asthma रोग से एकदम साम्यता रखता है । तमकश्वास (अस्थमा) वायु प्राणवह स्रोतों में पहुच कर गर्दन तथा शिर को जकड़ते हुए कफ का पुनः उदिरण करके पीनस रोग उत्त्पन्न करती है। कफ द्वारा  अवरुद्ध वायु कंठ में घुर - घूर शब्द के साथ अति तीव्र वेगों वाले श्वास रोग को उत्त्पन्न करती है। इस रोग में रोगी अंधकार में प्रविष्ट हुआ सा( आँखों के सामने अँधेरा ) अनुभव करता है । बार बार कफ के वेग से जब तक कफ बहार न निकल जाये रोगी बेचैन रहता है कफ निकलने पर रोगी थोड़ी देर के लिए उसे आराम हो जाता है। श्वास पीड़ित होने के कारण लेटने पर भी उसे निद्रा नही आती है, रोगी को बैठने पर कुछ आराम मिलता है । उष्ण वस्तुऍ अनुकूल होती है उसकी आँखे निकली रहती है ललाट पर पसीना होता है । उसका मुँह सूखा ,श्वास बार बार लेता है और पुनः पुनः तेजी से छोड़ता है। बादल ठन्डे जल , शीत ऋतू और कफवर्धक आहार विहार से रोगी को कष्ट  बढ़ता है । चिकित्सा :- 1 श्

कास (खाँसी)

आयुर्वेद ग्रंथो में कास, सामान्य बोलचाल में खाँसी कहा जाता है । कारण :- जल्दी जल्दी खाने के कारण भोजन के कण या पिने के पदार्थ का आहार नली में न जा कर श्वास नली में चला जाना, रुक्ष पदार्थ का अधिक सेवन, मल, मूत्र छींक आदि के वेग को रोकना, खट्टी, कसैली वस्तु का अधिक सेवन, अधिक परिश्रम, अधिक मैथुन, ऋतू परिवर्तन,सर्दी का प्रभाव आदि। लक्षण :- खाँसी से पूर्व मुँह में तथा कंठ में काँटे सी चुभन होती है, किसी वस्तु को निगलने पर दर्द। वातज कास होने पर- ह्रदय, कपाल, कंठ, सिर,छाती में दर्द, स्वर का फटा फटा निकलना, बिना कफ की खाँसी यदि कफ निकलता भी है तो बड़ी कठिनाई से| वातज कास को सुखी खाँसी भी कहा जाता है। पित्तज कास में - पिले रंग का,पित्त मिला हुआ, मुँह सुखा, कड़वा और चरपरा हो जाता है । प्यास अधिक लगती, तन्द्रा,निद्रा अधिक आती है गले या कंठ में जलन और हल्का बुखार लक्षण मिलते है । कफज कास में-अग्नि का मंद होना, अरुचि, वमन, जुकाम, मुँह स्वाद का मीठा,कंठ में खुजली का अनुभव, अत्यधिक खाँसने पर गाड़ा कफ निकलना । क्षयज कास में -(राज्य यक्ष्मा TB के लक्षण ) क्षतज कास किसी चोट या अधिक परिश्रम से उ

प्रतिश्याय (जुकाम)

कारण :- ऋतुचर्या के विपरीत काम करना, अधिक क्रोध, अधिक बोलना, रात्रि जागरण, अधिक सोना, अधिक रोना, अजीर्ण या बदहजमी, मल मूत्र आदि के वेग को रोकना, ठण्ड लगना, पानी में भीगना, धुँए आदि के कारण एवम् नाक में धूल आदि का जाना, अधिक मैथुन इन सब कारण से मस्तिष्क में कफ का जमा होना, और बढ़ी हुई वायु जुकाम को उत्पन्न करती है । वात, पित्त और कफ एक साथ या अलग अलग भी इसको उत्पन्न करते है । लक्षण :- पूर्व रूप में छीके आना, सिर में भारीपन, अंगो में अकड़न, अंगो का टूटना, गले में खुजली का अनुभव, नाक व मुँह से स्त्राव, नाक से धुँए जैसी हवा निकलना ये सब जुकाम होने के पूर्व लक्षण है । चिकित्सा :- 1- अदरक रस 1ml और शहद 1ml मिलाकर चाटना । 2 भुने हुए चने जुकाम में फायदेमंद है । 3  अग्नि कुमार रस  2-2 गोली पानी से।

वातरक्त (Gout)

इस रोग में वात की प्रधानता रहती है । दूषित रक्त वात से मिल जाता है, उसे वातरक्त कहते है। कारण :- आहार विहार का मिथ्या प्रयोग , रात्रि जागरण , दिन में सोना (शयन) , अजीर्ण भोजन , अधिक पैदल चलना , मछली , शराब , सुखा मांस , खट्टे , चरपरे , गरम , चिकने तथा नमकीन पदार्थ का अधिक सेवन हाथी - घोड़े की सवारी आदि कारणों से वायु और रक्त दोनों कुपित हो जाती है । लक्षण :- इस रोग के प्रारंभ में अधिक पसीना या बिल्कुल कम पसीना आना , फोड़े फुंसी निकलना , भारीपन , मेद वृध्दि , खुजली , चकत्ते पड़ जाना , दाह हो कर शांत हो जाना , शोक , जंघा में कमजोरी । यह रोग पांवो की जड़ से और कभी कभी हाथो की जड़ से उठकर संपूर्ण शरीर में फेल जाता है । चिकित्सा :- 1 योगराज गुग्गुल 2 गोली गिलोय के क्वाथ से 2 चोपचिन्यादि चूर्ण  3 ग्राम भोजन के 1 घंटे पूर्व 3  आरोग्यवर्धनी वटी  3 गोली रात को 4  महामंजिष्ठारिष्ट   20 ml और 20पानी भोजन के बाद ।  

पक्षाघात और लकवा

आयुर्वेद में 80 प्रकार के वात रोग बतलाये गए है । कारण :-  रुक्ष, कटु, कसैले, तिक्त(कडवा) तथा शीतल पदार्थो का सेवन, कम खाने, अत्यधिक मैथुन, अधिक जागरण, मल मूत्र वेग को रोकना, चिंता, शोक-दुख, अधिक परिश्रम, व्रत उपवास अत्यधिक, अधिक सर्दी, द्रुतगामी वाहन की सवारी, रस रक्त आदि धातु का क्षय आदि कारण से वात प्रकोप होता है । चिकित्सा :- 1- दशमूलारिष्ट काढ़ा - 20 ml +20 ml       कुनकुना पानी 2 - अश्वगंधा चूर्ण     5 ग्राम रात्रि में 3 - वातचिंतामणि रस -5 ग्राम       प्रवाल पिष्टी        -5 ग्राम दोनों को मिक्स           कर 30 पुड़िया बनाना 1-1 सुबह शाम पानी से 4 - वात गजांकुश रस 1-1दिन में 2 बार पीपल       के चूर्ण साथ ऊपर से हरड़ का काढ़ा पीवे ।

अरुचि (अरोचक)

भूख लगने पर खाया हुआ भोजन का निवाला अच्छा न लगे, खाने की रूचि न हो, भोजन की बात मात्र से,  गंध आने और देखने से जो वितृष्णा हो उसे अरुचि कहते है । लक्षण:- अरुचि में मुँह का स्वाद कसैला, दन्त खट्टे, मुँह का स्वाद चरपरा तथा दुर्गन्धित, प्यास अधिक लगती है जलन बहुत होती है, भारीपन, ठंडक, थूक गिरना ,मोह, मूर्च्छा, जड़ता तथा मन की व्याकुलता आदि । चिकित्सा :- 1 शंख वटी - दिन में तीन बार 1-1 गोली 2 गंधक वटी - भोजन के 2 घंटे बाद 1-1गोली 3 द्राक्षासव -20 ml और 20 ml पानी भोजन के बाद

Hyperacidity (एसिडिटी)

आयुर्वेद अनुसार विदग्ध पित्त की वृद्घि अम्लपित्त है । पित्त वस्तुतः ताप या संताप जनक पदार्थ का नाम है। अम्लपित्त को लाक्षणिक दृष्टी से देखा जाये तो हाइपर एसिडिटी से सम्बंधित  है। सामान्य लक्षण :- 1- Indigestion 2- Nausea (जी मचलाना ) 3- Anorexia (अरुचि) 4- Heart burn 5- अम्लोंउद्दगार 6- शरीर में भारीपन 7- बिना परिश्रम के थकावट होना | चिकित्सा :- 1-जटामांसी चूर्ण   2 ग्राम    माक्षीक भस्म    125 मि. ग्राम    प्रवाल भस्म       125 मि. ग्राम    सूतशेखर रस     250 मि. ग्राम                      दिन में तीन बार आमलकावलेह से 2- नारिकेल खण्ड 10 ग्राम गो दुग्ध से सुबह शाम पथ्या :- गेहूं,जौ,चने का सत्तू , मटर,करेला,परवल,हरी सब्जी आदि । अपथ्या:- गुरु (भारी) भोजन,तिल,उड़द,तीक्ष्ण पदार्थ,मसाले,तेल,आलू,बेंगन,भात आदि ।

Psoriasis (सोरियासिस)

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Psoriasis is a Non infectious, inflammatory disease of the skin, it is well defined erythematous plaques with large, adherent, silvery scales. Excessive division of cell in the basal layers. आयुर्वेद के अनुसार यह वात कफ दोषो के कारण होता है । इसे क्षुद्र कुष्ठ कहते है। Treatment:- 1 अश्वकंचुकी रस त्रिफला क्वाथ से सुबह शाम 2 आरोग्यवर्धनि वटी 2-2 गोली दूध से सुबह शाम 3 पंचतिक्त घृत आधा चम्मच +मिश्री पाउडर + गो दूध कुनकुना पीये । 4 निम्ब तेल लगाने के लिए प्रयोग करे ।

प्राथमिक उपचार (primary treatment)

1 अजवाइन :-  अजवाइन को हल्का भून कर 2-3 ग्राम की मात्रा में कुनकुने पानी से या दूध से ले सर्दी, जुखाम और पेट के रोगों में लाभ मिलता है। 2 मेथी :-   मेथी, हल्दी, सोंठ तीनो को बराबर मात्रा में पाउडर  कर रख ले। 1-1 चम्मच सुबह शाम कुनकुने पानी या कुनकुने दूध से लेने पर जोड़ो का दर्द ,वात व्याधि और सूजन में आराम मिलता है। 3 इलायची:-  मुंह में छाले होने पर इलायची पीस कर शहद के साथ छालो पर लगाना फायदेमंद होता है।           4 काली मीर्च:- अत्यधिक खाँसी की स्थिति में 1-2 काली मीर्च मुह में रख कर चूसने पर तुरन्त आराम मिलता है।                    

गैस और कब्ज का समाधान

 आज हर कोई पेट की समस्या से पीड़ित है । हर बीमारी का कारण पेट से जुड़ा है । पेट अग्नि केंद्र है। जो भोजन का पाचन करता है । मस्तिष्क संचालक है, जो पुरे शरीर को सुचारू रूप से संवेदना आदान प्रदान का निर्वाह करता है । आज की भाग दौड वाली जिंदगी में अनियमित खानपान व दिनचर्या का अनिश्चित पेट की समस्या को उत्पन करता है,जो आज आम हो गया । पेट में गैस , कब्जियत  और मुह के छाले ये सभी एक दूसरे से जुडी हुई समस्या है। कई बार ये इतनी गंभीर होती हे कि जान जोखिम में आ जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा एवम् कुछ नियम - भोजन समय तय करे सुबह शाम का। - भोजन एक ही तरह का लगातार न ले । -  खाने से पहले अदरक का टुकड़ा,सेंधा नमक को चबा कर खाये फिर भोजन शुरू करे । -भोजन को चबा चबा कर खाये ताकि लार पूरी तरह से भोजन में मिल जाये । - लवणभास्कर चूर्ण  आधा चम्मच भोजन के 30 मि.पहले ले । या - हिंगांवष्टक चूर्ण  1 चम्मच भोजन के बाद ले । - भोजन में सलाद और हरी सब्जिया ले। चाय ,मिर्च ,मसाले,भारी भोजन को उपयोग में न ले। - भोजन के बाद वज्रासन में बैठे । - भोजन करने के 2 घंटे बाद बिस्तर पर लेटे। - दिनचर्या में सुबह की शेर

बार बार गैस बनती हैं ?

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आज हर कोई पेट की समस्या से पीड़ित है । हर बीमारी का कारण पेट से जुड़ा है । पेट अग्नि केंद्र है। जो भोजन का पाचन करता है । मस्तिष्क संचालक है, जो पुरे शरीर को सुचारू रूप से संवेदना आदान प्रदान का निर्वाह करता है । आज की भाग दौड वाली जिंदगी में अनियमित खानपान व दिनचर्या का अनिश्चित पेट की समस्या को उत्पन करता है,जो आज आम हो गया । पेट में गैस , कब्जियत  और मुह के छाले ये सभी एक दूसरे से जुडी हुई समस्या है। कई बार ये इतनी गंभीर होती हे कि जान जोखिम में आ जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा एवम् कुछ नियम - भोजन समय तय करे सुबह शाम का। - भोजन एक ही तरह का लगातार न ले । -  खाने से पहले अदरक का टुकड़ा,सेंधा नमक को चबा कर      खाये फिर भोजन शुरू करे । - भोजन को चबा चबा कर खाये ताकि लार पूरी तरह से           भोजन में मिल जाये । - लवणभास्कर चूर्ण आधा चम्मच भोजन के 30 मि.पहले ले ।     ( हाइपरटेंशन रोगी इसे न ले ।) - हिंगांवष्टक चूर्ण  1 चम्मच भोजन के बाद ले । - भोजन में सलाद और हरी सब्जिया ले।  - चाय ,मिर्च ,मसाले,भारी भोजन को उपयोग में न ले। - भोजन के बाद वज्रासन में बैठे । - भोजन

Hair loss /Hair fall (बालो का झड़ना)

ज्यादा alcohol, meat ,tea, coffee, excessive smoking, oily, spicy, and acidic food से पित्त दोष की वृद्दि होती है । जिससे असमय बालो का सफेद होना , दोमुहे होना और झड़ना लगातार बढ़ता जाता है। चिकित्सा :- 1 गंधक रसायन 3 ग्राम पाउडर    मिश्री पाउडर  3 ग्राम  दोनों को मिला कर   100 पुड़िया (पाउच) बनाना है सुबह शाम एक    एक पाउच पानी से 3 माह तक । 2 Aloe vera (ग्वारपाठा,घृतकुमारी) 1/2     चम्मच जूस दिन में दो बार । 3 गाजर (carrot) जूस दिन में एक बार । 3 विटामिन बी व सी का प्रयोग करे । 4 बालो में भृगराज तेल लगाये।

Vitiligo and leucoderma (सफेद दाग)

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श्वित्र को आधुनिक भाषा में विटिलिगो  कहते है । श्वित्र त्वचा के वर्णक (melanin pigment) के स्थानीय आभाव के कारण होता है । मूल कारण अज्ञात है परन्तु आघात, घाव के बाद या त्वचा में फफोले (जलने पर) पड़ जान के बाद जो स्थानीय त्वचा सफेद रंग की हो जाती है  उसे लुकोडर्मा ( सफेद धाग ) कहते है । यह कुछ समय के बाद ठीक हो जाता है , यदि अन्दर की धातु में विकृति न हुई हो। चिकित्सा:- 1.स्वयंभू गुग्गूल         2-2 गोली सुबह शाम 2. चोपचिन्यादि चूर्ण   3 ग्राम (आधा चम्मच)                                सुबह शाम भोजन के पूर्व। 3 आरोग्यवर्धनी         3 गोली (300 mg)रात में । 4. सोमराजि तेल दाग पर लगाने के लिए ।

Hypertension(ब्लडप्रेशर) Diet plan

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ब्लडप्रेशर में आयुर्वेद आहार एवम् नियम 1.ज्यादा मात्रा में भोजन न ले, साथ ही गुरु    (भारी) भोजन से भी परहेज करे । 2  फलों और सब्जियों का सेवन ज्यादा करना     चाहिए। 3. भोजन में सोडियम की मात्रा कम होनी      चाहिए। (नमक का सेवन कम करे) 4.बाहरी उत्पादों, चीनी, रिफाइन्ड खाद्य    पदार्थों, तली-भुनी चीजों और जंक     फूड से परहेज रखना चाहिए। 5.गेहूं का आटा, ज्वार, मूंग साबुत ,बाजरा तथा   अंकुरित दालों का सेवन करे । 6. सब्जियों में लौकी, नींबू, तोरई, पुदीना, परवल,    सहिजना, कद्दू, टिण्डा, करेला आदि का सेवन      करना चाहिए। 7. मौसमी, अंगूर, अनार, पपीता, सेब,     संतरा, अमरूद, अन्नानास आदि फल ले सकते हैं। 8. बिना मलाई का दूध, छाछ ,गाय का घी,गुड़,       चीनी, शहद आदि सेवनीय है।

Sciatica ( सियाटिका)

Sciatica is lower back and leg pain. एड़ी तथा प्रत्येक पेरो की उंगलिओ की कण्डराये वात दोष से प्रकुपित होती है तथा टांगो के फैलाओ को रोक देती है इस रोग को गृधसि ( सियाटिका ) कहते है। सियाटिका नाडी नितम्ब से पैर तक जाती है तथा उसमे वातरक्त , मधुमेह , पसीने में ठंडी हवा लगाना, चोट, मोच, आदि कारण से पीड़ा नितम्ब से नीचे पैरो तक जाती है। चिकित्सा :- 1. वात गजांकुश रस -1 गोली     पीपली चूर्ण         -100मिली ग्राम (चुटकी भर)     मंजिष्ठा क्वाथ     - 20 मि.ली.+ 20 मि.ली.                                       कुनकुने पानी के साथ। 2. महावात विधंसक रस -  65 मि.ली.     आम का मुरब्बा        - 2.5 ग्राम     भंगारे का रस           - 10 मि.ली.                                      दिन मे दो  बार।     3. निर्गुण्डी तेल से मालिश           

Rains (वर्षा ऋतु)

आदान काल (late winter,spring,summer ) के प्रभाव से शरीर दुर्बल एवम् जठराग्नि  (पेट का पाचन तंत्र) मंद होती है तथा पुनः वृष्टि हो जाने से भूमि से वाष्प निकलने से पिये गये जल का अम्लविपाक होने से तथा दूषित वातादि दोष के प्रभाव से जठराग्नि और मंद हो जाती है । इस ऋतू में सेवन :- जिस दिन वर्षा हो रही हो, वायु बह रही हो उस दिन सूखा -रुक्ष वात नाशक युक्त भोजन ले । वर्षा ऋतू में सुखा, हल्का, स्निग्ध, उष्ण, अम्ल,लवण रस युक्ता भोजन करे । प्राय सभी अन्न पान को मधु (शहद) मिश्रित से करना चाहिए। निषेध :- नदियो का जल, मंथ(सत्तू), दिन में सोना, अतिद्रव पदार्थ , अधिक मैथुन, पैदल चलना व व्यायाम अत्यधिक न करे।

Dermatitis त्वचा रोग ।

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Dermatitis is inflammation of the skin. The type of dermatitis depending  on areas of skin may become red  and itchy. scales or blisters that ooze fluid. Treatment:- 1 गिलोय सत् या अमृता सत्                              225 mg  with honey 2 पंचतिक्त घृत                     1/2-1/2चम्मच कुनकुने पानी से  3 निम्बादि क्वाथ             3 चम्मच और 3 चम्मच कुनकुने पानी से 4 गंधक रसायन                          2 ग्राम और 2 ग्राम मिश्री   पाउडर 40 पुड़िया बना कर 1-1सुबह शाम    दूध से 5 मरिच्यादि तेल                      लगाने के लिए दिन में एक बार

शीघ्र पतन (Premature Ejaculation)

Premature Ejaculation (शीघ्र पतन) Premature Ejaculation is a Sexual dysfunction aged below 40 years. Treatment :-                     1 Virya Stabhan vati -         वीर्य स्तंभन वटी।              1-3 tablets with honey then after drink  milk ad. with sugar. 2 Shatsakar churna  -          षटसकार चूर्ण।      5gram at night only 8 days. 3 Virya Shodhan vati  -       वीर्य शोधन वटी       2 tablet  three time in day. 4 Shilajit Sat -    शिलाजीत सत्      1 drop with milk.

थायरॉइड ग्रंथि (hyperthyroidism)

थाइरॉइड ग्रन्थि गर्दन में होती है। यह श्वास प्रणली (trachea)or स्वर यन्त्र के पास लगी रहती है। गहरे लाल रंग की 25 ग्राम भार वाली ग्रंथि है। यह निम्न हॉर्मोन स्त्राव करती हे ट्राईडोथीरोनिन (T3) or थीरोक्सिन (T4), थीरोकैल्किटोनिन etc. T3 व T4 दोनों के कार्य का परिणाम एक जैसा है 1 रक्त में ग्लुकोज की मात्रा को बढ़ाता है। 2 आंतो में ग्लुकोज अवशोषण को उत्तेजित करता है। 3 प्रोटीन व वसा से ग्लुकोज के निर्माण में सहायक । 4 शरीर की सामान्य वृद्दि , कंकाल (skeleton) की वृद्दि, sexual maturation,मानसिक विकास को प्रभावित करते है। Hyperthyroidism थायराइड की एक overproduction T3 और टी -4 हार्मोन का। थायरॉयड गण्डमाला(goiter) के रूप में लक्षण, आँखें (exopthalmos) फैला हुआ, धड़कन, अतिरिक्त पसीना, दस्त, वजन घटाने, मांसपेशियों में कमजोरी और गर्मी के लिए असामान्य संवेदनशीलता। भूख अक्सर बढ़ जाती है। thyroid चिकित्सा- 1आरोग्यवर्दनि वटी 2 कांचनार गुग्गुल दोनों 1-1गोली दिन में तीन बार कुनकुने पानी से। 3 गिलोय घन वटी 2-2 गोली   सुबह शाम   4 सर्वकल्प क्वाथ 200ग्राम    मुलेठी क्वाथ    100ग्राम    

Premature Ejaculation (sighrapatana)

Premature Ejaculation is a Sexual dysfunction aged below 40 years. Treatment :-                      1 Virya Stabhan vati -    1-3 tablets with honey then after drink  milk ad. with sugar.  2 Shatsakar churna  -      5gram at night only 8 days. 3 Virya Shodhan vati  -   2 tablet  three time in day. 4 Shilajit Sat -                  1 drop with milk.

Rheumatoid Disease (आमवात)

आमवात संधिशोथ (joints pain) व शूल(pain) युक्त व्याधि है। कारण- विरुद्ध आहार विहार, मन्द्वग्नि, निश्चेस्ट पड़े रहना (lack of exercise),स्निग्ध आहार ले कर व्यायाम। सामान्य लक्षण - शरीर की छोटी या बड़ी सभी संधि(joint)में तीव्र वेदना , सूजन (शोथ), कर्मनाश (loss of function),कभी कभी ज्वर (फीवर), पीडा (pain),दाह(जलन),उत्सेध(सूजन) । चिकित्सा- 1आमवातारि रस 2-2 . सु. शा. 2 संजीवनी वटी 2-2-2 सु. दो. शा. 3 दशमूलारिष्ट 20 ml+20 पानी भोजन के बाद 4अश्वगंध चूर्ण 5ग्राम  सु.शा.। अपथ्य- दूध,दही,मछली,उडद, दूषित पानी ,मल मूत्र आदि वेग रोकना,रात्रि जागरण,गुरु(भारी भोजन),शोक,आलस्य,चिंता।

एकाग्रता और याददाश्त में कमी का उपाय । (Omega-3)

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Benefits of Omega-3 Fatty Acids Omega 3 के कार्य-  1 शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है ।        2 ह्रदय और रक्त वहिंकाओ को सुरक्षित रखता है। 3 मस्तिष्क के लिए अत्यंत आवश्यक तत्व है । 4 शरीर की अनावश्यक वसा को निकल ह्रदय को स्वस्थ            रखता है। 5 गठिया के दर्द को कम करता है। 6 यह सेक्स हॉर्मोन को बनाने में सहायक होता है। कमी से होने वाले रोग -  सूखी चमड़ी, एकाग्रता और याददास्त में कमी ,उच्च रक्तचाप , एग्जिमा, सोरिएसिस। (Dry skinned, concentration and memory loss, high blood pressure, eczema, PSorisis.) प्राप्ति स्त्रोत- (Source)  कद्दू के बीज,सन् बीज , सूर्य मुखी के बीज। (Pumpkin seeds, flax seeds, sunflower seeds.)

Ras manikya (रस माणिक्य)

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Indigestion Dyspepsia (अजीर्ण अपचन)

सामान्य अजीर्ण :-                1 अग्निकुमार रस                2  क्रव्याद् रस                3  गंधक वटी विदग्धाजीर्ण:-                1 आरोग्यवर्धनी वटी                2  शंख वटी                3  लवणभास्कर चूर्ण रसशेषा जीर्ण :-               1 प्रवाल भस्म               2 शंख भस्म               3 अग्नितुंडी वटी जीर्ण अजीर्ण :-               1 कासीस भस्म               2 ताप्यादि लौह               3 सुवर्णमालिनी बसंत (उपरोक्त औषध आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से ले।)

Arthritis (आमवात संधिवात गठिया)

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OVARIAN CYST (अंडाशय की गांठे / cyst )

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PCOD (polycystic Ovarian Disease) महिलाओं में सामान्य रूप से मिलता है। महिलाओं में sex hormones के असंतुलन के कारण अंडाशय ( ovary) में छोटी छोटी गाठ या cyst हो जाती है जिसके कारण महिलाओं के मासिक धर्म ( Menstrual Cycle ) और प्रजनन क्षमता ( fertility ) पर असर पड़ता है। समय पर चिकित्सा नहीं करने पर यह कैंसर ( cancer) का रूप ले लेती है। महिलाओ में अंडाशय में सामान्य से अधिक मात्रा में androgen hormones की निर्मित होने ovary में छोटी छोटी तरल पदार्थ युक्त cyst बन जाती है । लक्षण :- 1  अनियमित मासिक धर्म ( menstrual cycle) 2  चेहरे / शरीर पर अधिक बाल 3 मुंहासे (Acne) 4 पेटदर्द (Abdomen pain) 5 गर्भधारण में मुश्किलें आना 6 बार बार गर्भपात 7 मोटापा (Obesity) . In Ayurveda  This condition is not explained as a single disease entity, but it can be considerd under the heading of yoni vyapat. Also pushpaghani rewati, mentioned by acharya kashyap bears some similarity with the symptoms of PCOs. Treatment:- 1 आरोग्यवर्धनी वटी (Arogyavrdhni vati) 2 कांचनार गुग्गुल (kanchnar g

Summer Season

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Piles (अर्श)

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Natural treatments to reduce excess body fat

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1)   Exercises aerobic extremely necessary measures are beneficial . Lazy  lifestyle is obesity  increases. So activism are important.  2 ) The use of alcohol and substances produced milk is prohibited  3 ) fruit and vegetable everyday use 750 gram .  4) avoiding  more  carbohydrates  items, potato, and rice is more carbohydrates. The fat that   increase.   5) Only the wheat flour instead of bread wheat, soybean, mixed with gram flour bread is more beneficial . 6) weight controlling body has special significance in yoga. Khapalbhati, Bstrika regular practice .. 7) Visit morning brisk half hour. Weight loss is the best way. 8) In the dining Include more  fibre  material.                                                                                                                                                                                                                    PTO…..                                                        

शरीर की अतिरिक्त चर्बी कम करने के कुदरती उपचार। 

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 १) चर्बी घटाने के लिये व्यायाम बेहद आवश्यक उपाय है।.        एरोबिक कसरतें लाभप्रद होती हैं। आलसी जीवन शैली से      मोटापा बढता है। अत: सक्रियता बहुत जरूरी है। २)  शराब और दूध निर्मित पदार्थ का उपयोग वर्जित है । 3)  रोज  पोन किलो फ़ल और सब्जी का उपयोग करें। 4)  ज्यादा कर्बोहायड्रेट वाली वस्तुओं का परहेज करें।शकर,आलू,और चावल में अधिक कार्बोहाईड्रेट होता है। ये चर्बी बढाते हैं। सावधानी बरतें। 5)  केवल गेहूं के आटे की रोटी की बजाय गेहूं सोयाबीन,चने के मिश्रित आटे की रोटी ज्यादा फायदेमंद है। 6)  शरीर के वजने को नियंत्रित करने में योगासन का विशेष महत्व है। कपालभाति,भस्त्रिका का  नियमित अभ्यास करें।। 7) सुबह आधा घंटे तेज चाल से घूमने जाएं।  वजन घटाने का सर्वोत्तम तरीका है। 8) भोजन मे ज्यादा रेशे वाले पदार्थ शामिल करें।

गेंहू के ज्वारे

सेहत बनाते हैं गेहूँ के जवारे व्हीट ग्रास यानी गेहूँ के जवारे को आप जूस की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। जर्म को तेल के रूप में या फिर पावडर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका उपयोग सलाद के साथ भी किया जा सकता है। जब आप व्हीट ग्रास का जूस बनाएँ, तो ब्लैंडर को धीमा ही रखें, तेज स्पीड इसके प्राकृतिक घटकों को नष्ट कर सकती है। पाचन तंत्र ठीक रखने और त्वचा को चमकदार रखने के लिए कुछ ग्राम व्हीट ग्रास लेकर उन्हें अच्छी तरह से साफ करें। फिर धीरे-धीरे ब्लैंड करें। इसमें एक छोटा गिलास पानी डालें और ताजा ही पी लें। स्वास्थ्य और स्वाद के लिए थोड़ा-सा शहद भी डाल सकते हैं।व्हीट जर्म का तेल प्रसव के बाद के स्ट्रेच मार्क को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है। एक चम्मच व्हीट जर्म ऑइल को कैलेंड्यूला ऑइल के साथ मिलाकर प्रभावित हिस्से में हर दिन धीरे-धीरे मसाज करें।

आयुर्वेद रस-रसायन, वटी व गोलिया

आयुर्वेद रस-रसायन, वटी व गोलियाँ   अगस्ति सूतराज रस : संग्रहणी अतिसार, आमांश शूल व मंदाग्नि में। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं भुना जीरा, मठा या शहद में। अग्नि तुंडी वटी : मंदाग्नि, पेट फूलना व हाजमे के लिए तथा अजीर्ण के दस्त बंद करती है। मात्रा 1 से 3 रत्ती। अग्नि कुमार रस : अजीर्ण, मंदाग्नि एवं पेट दर्द आदि में। मात्रा 1 से 3 रत्ती। अजीर्ण कंटक रस : अजीर्ण व हैजे में। मात्रा 1 से 3 रत्ती तक प्याज व अदरक रस के साथ। अर्श कुठार रस : बवासीर व पद्धकोष्ठ में हल्का दस्तावर है। मात्रा 2 रत्ती शहद में। आनंद भैरव रस : सन्निपात ज्वर, अतिसार, जीर्ण ज्वर, सर्दी, जुकाम, खाँसी व आमवातादि रोगों में। मात्रा 1 से 2 गोली शहद व पान के रस में। आमवतारि रस : आमवात विकार के कारण शरीर के दर्द में लाभकारी। मात्रा 1 से 4 गोली गर्म पानी में अथवा दूध से। आरोग्यवर्द्धिनी वटी नं.1 : पाचक, दीपक, मेदनाशक, मलावरोध, जीर्ण ज्वर, रक्त विकार, शोथ व यकृत रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली रात्रि को ठंडे जल के साथ