पुष्पधन्वा रस बल्य और वाजीकारक।


यह रसायन बल, वीर्य, कामोत्तेजक और शक्तिवर्धक एवं उत्तम वाजीकारक है। इसके नियमित सेवन से वीर्यस्राव, वीर्य विकार, ध्वजभंग, बन्ध्त्व दोष आदि रोग नष्ट होते है। यह रस स्त्रियों के बीजाशय (uterus) के योग्य विकास न होने से  उत्पन्न बन्ध्त्व दोष और पुरुषों के शुक्रस्त्राव की दुर्बलता से पैदा हुई नपुंसकता की अव्यर्थ औषधि है । ज्यादा स्त्री प्रसंग करने से शुक्र (वीर्य ) पतला हो जाता है । ऐसे समय में उत्तेजना ( काम की इच्छा ) होने पर सिर में दर्द होने लगता है और यह दर्द तब तक होता रहता है; जब तक वीर्यस्राव नहीं हो जाता है ।
जैसे पुरुषो को कभी मनोव्याघात या और भी किसी आकस्मिक दुर्घटना के कारण स्त्री-प्रसंग करने की इच्छा नहीं होती; उसी तरह कभी कभी स्त्री को भी यह शिकायत हो जाती है।      
इस रसायन में :-
रस सिंदूर - बलवर्धक, उत्तेजक और योगवाही है।
नाग भस्म - स्तम्भक, बल्य और मेहनाशक है।
अभ्रक भस्म - मानसिक कष्ट से उत्त्पन्न हुए मनोविकार नाशक, धातुओं को परिपुष्ट करनेवाला, योगवाही और रसायन है।

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