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Showing posts from 2017

त्रिफला गुग्गुल - आयुर्वेद का तोहफा

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त्रिफला गुग्गुल  - आयुर्वेद का तोहफा त्रिफला जैसे विकृत मेद  का लेखन, पाचन एवं क्लेद का नाश करने वाले द्रव्यों से निर्मित यह गुग्गुल मेदोवह स्त्रोतस के विकारो में श्रेष्ठ औषध है। त्रिफला उत्कृष्ट लेखन कार्य करता है। मेदोवह स्त्रोतस का सबसे महत्वपूर्ण विकार है, स्थौल्या (मोटापा ). त्रिफला गुग्गुल के प्रयोग से मेदधात्वग्निवर्धन, अपचित मेद एवं क्लेद का लेखन होता है।

स्मृति शक्ति एवं बुद्धिवर्धक

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स्मृति शक्ति एवं बुद्धिवर्धक शंखपुष्पी - सर्वोत्तम मेध्य रसायन शंखपुष्पी के पंचांग को छाया में सुखाकर कूट पीस चूर्ण कपड़ छान कर रख लें। ऐसा शंखपुष्पी चूर्ण ६ ग्राम और इतनी ही मात्रा में मिश्री पाउडर ले कर ऊपर से एक ग्लास गाय का दूध पीना चाहिए। नोट - यह प्रयोग शीत और सर्द मौसम में करें।

नाड़ी विज्ञान ( नाडी परीक्षा)

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नाड़ी विज्ञान  करस्यांगुष्ठमूले या धमनी जीवसाक्षीणी । तच्चेष्टया सुखं दुखं ज्ञेयं कायस्य पण्डितः ।। शा. पु । दोषानुसार नाड़ी गति  दोषप्रकोप   अंगुली                     गति 1 वातज        तर्जनी    -    वक्र- सर्प के समान। 2 पितज        मध्यमिका  -  चंचल - काक, मण्डूक। 3 कफज       अनामीका  -  मंद- हंस या पारावत । 4 वातपितज   तर्जनी- मध्यमिका - वक्रचंचल 5 वातकफज   तर्जनी- अनामीका - वक्रमंद  6 पितकफज  अनामीका- मध्यमिका- कभी मंद, कभी चंचल  7 त्रिदोषज    तर्जनी-मध्यमिका-अनामीका- तीनो दोष समान

उर्जा को कम करने वाले खाने से सावधान रहे:

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उर्जा को कम करने वाले खाने से सावधान  रहे: जैसे की उर्जा को बढाने के स्त्रोत होते है ठीक वैसे ही उर्जा को कम करने के भी स्त्रोत होते है जैसे की फास्ट फूड, डिब्बाबंद, जमे हुए, पैक, बचे हुए, या पुराने खाद्य पदार्थ जो की  पचाने में मुश्किल होते हैं और इनमे पोषण संबंधी  सामग्री बहुत कम होती है | यदि आप इन खाद्य पदार्थों में से कुछ खाते हैं, और खाने के बाद आपको भारी महसूस होता है,   तो आपको क्या करना हैं  - आधा गिलास पानी पीने के लिए ले, जिसमें ताजा नींबू रस (¼) निचोड़ा ले या पाचन की सहायता के लिए दीपन पाचन टेबलेट ले। यदि आपको लगता है की आपको  ऊर्जा  की जरूरत है तब  अपको उर्जा  वाले आहार भोजन में शामिल करना चाहिए, बजाये कृत्रिम बूस्टर पर भरोसा करने से  क्योंकि इनसे  हमेशा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

उच्च-ऊर्जा वाला खाना खाये

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यह आपको आश्चर्यचकित कर सकता है, लेकिन वास्तविक ऊर्जा-बूस्टर ताजे फल, सब्जियां, मसालों और अनाज हैं। ये  उर्जा से संपन्न खाद्य पदार्थ हैं  जब आप इन्हें खा लेते हैं तो शरीर में थकावट पैदा करने वाला विषाक्त पदार्थ जमा नहीं हो सकता।  अनाज: अनाज उर्जा का एक अच्छा स्त्रोत है| सबसे पौष्टिक कार्बोहाइड्रेट पूरा अनाज होता है | जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने , कैंसर पैदा करने वाली गतिविधि और आंतों में हानिकारक बैक्टीरिया को रोकते हैं, और रक्त ग्लूकोज स्तर कम करते हैं। बाजरा को सबसे अधिक पौष्टिक  माना जाता है|  क्योंकि उनमे विशेष रूप से प्रोटीन और खनिजों की मात्रा अधिक होती है | ये फाइबर में भी युक्त होते है,  वे वैदिक ग्रंथों में वर्णित एक ही शुभ अनाज हैं और वेदिक समारोहों के लिए उपयोग किया जाता है |बाजरा  विटामिन बी का एक अच्छा स्रोत है |  सब्जियां और फलों:   अन्य उच्च ऊर्जा वाले खाद्य पदार्थों में ताजा सब्जियां शामिल हैं, जो कि चालीस प्रतिशत भोजन का होना चाहिए। ग्रीन, पत्तेदार सब्जियां विशेष रूप से खनिजों और फाइबर में अधिक होती हैं, इसलिए इसे अक्सर खाया जाना चाहिए | फल भी ऊर्जा का स्रोत है

बस दो दिन में फोड़े फुंसी ख़त्म करे (removes boil and pimples)

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जलजमनी या छिलिहिंट (cocculus hirsutism) जो की गुडूची कुल की है, इसकी प्रसरणशील, रोमश लता पाठा के समान होती है। गुण - लघु, स्निग्ध, पिच्छिल । रस - तिक्त । प्रभाव- विषघ्न। त्वचा में कुष्ठघ्न होने के साथ यह रक्तभाराधिक्य एवं रक्तविकारों में प्रयुक्त होता है । चेहरे पर अधिक फुँसियाँ या फोड़े हे तो बस इसकी पत्तियों को घिसकर लेप तैयार करना है और उसे फुंसियो पर इस्तेमाल करना है, 1-2 दिनों में फुंसियो का नामो निशान ख़त्म करे।

रसोनादि अर्क

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रसोनादि अर्क   द्रव्य -  लहसुन की साफ कली           ६ तोला (72 ग्राम) तुलसी के हरे पत्ते                   २ तोला (24 ग्राम) जावित्री का अधकचरा चूर्ण     ६ तोला (72 ग्राम) परिशोधित सुरासर                 ६० औंस (168 मिली)    विधि - इन सबको मिलाकर  बोतल के मुँह पर डाट लगा लें। बोतल का मुँह बंद करें और ४८ घंटे तक भिगोकर बाद में फ़िल्टर पेपर से छान लें।  मात्रा -  ५ से १० बूंद १-१ औंस जल (२८ मिली.) के साथ दिन में ३ बार लेवें।  उपयोग - यह रसोनादि अर्क उष्णवीर्य, उत्तम जन्तुघ्न, दीपन, पाचन, और वातहर औषध है।  वर्तमान समय में मोतीझरा, रक्तपित्त, रक्तभार बढ़ना (हाईब्लडप्रैशर), संग्रहणी, अग्निमांद्य, अजीर्ण, कर्णशूल, नाड़ीव्रण आदि  रोगो में उपयोगी है।       लहसुन में रक्तभार कम करने का गुण है।  इसलिए रसोनादि अर्क बढ़े हुए रक्तभार के रोगियों को देते है इससे चक्कर आना कम हो जातेहै। शांत निद्रा आती है। 

अदरक ( Ginger)

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अदरक रस में कटु, गुण में रुखा, तीखा, उष्ण-तीष्ण एवं विपाक में मधुर होने के कारण कफ तथा वात का नाश करता है, पित्त को बढ़ाता है।  इसका अधिक सेवन रक्त की पुष्टि करता है, यह उत्तम आमपाचक है।  यह भोजन में रूचि बढ़ाने के लिए इसका सार्वजनिक उपयोग किया जाता है।  आम (अपच भोजन ) से उत्प्नन होने वाले अजीर्ण, अफरा, शूल, उलटी आदि में और कफजन्य सर्दी-खाँसी में अदरक बहुत उपयोगी है।  सावधानी - रक्तपित्त, उच्चरक्तचाप, अल्सर, रक्तस्त्राव एवं कोढ़ (त्वचाविकार) में अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए।  अदरक को फ्रीज़ में रखने से इसके अग्नित्व गुणों में कमी होती है।  औषद्यि प्रयोग - १ - अच्छी नवीन अदरक १ सेर उबाले, फिर छीलकर पीसे अनन्तर उत्तम हल्दी आधा पाव पीसकर घी में भूनकर अदरक में मिलाये सेर भर पुराण गुड़ भी मिलावे और एक अमृतवान में रख छोड़े फिर प्रतिदिन बलानुसार एक तोला से दो तोला तक खा सकते है, इस प्रयोग से  खाँसी, मंदाग्नि और दमा रोग में आराम मिलता है।  २ - नाभि में अदरक रस डालने मात्र से अतिसार में आराम मिलता है।  ३ - अदरक रस ( ५ बूँद ) और शहद ( १ चम्मच ) जुकाम, खाँसी और दमा को दूर करता ह

थकान और कमज़ोरी

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थकान आजकल की बहुत आम समस्या है। सामान्य शब्दों में इसे बहुत अधिक थकान या सुस्ती या कमजोरी महसूस होना भी कह सकते हैं। 1.  प्रतिदिन एक कप गर्म जीरे की चाय का सेवन किया जाए या यदि प्रतिदिन भुने हुए जीरे के पाउडर का सेवन किया जाए तो आपको थकान दूर करने में सहायता मिलती है।  इससे न केवल हार्मोन्स नियमित होते हैं बल्कि इससे आपका प्रतिरक्षा तंत्र भी मज़बूत होता है और मूड भी अच्छा रहता है। यह सभी प्रकार की बीमारियों के लिए फर्स्ट एड की तरह काम करता है। 2.  राई के दानों में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, केरोटीन और मिनरल्स पाए जाते हैं जो शरीर में रक्त के परिसंचरण को बढ़ाते हैं। राई के दाने ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं और इस प्रकार थकान को दूर करते हैं। 3.  एक कप अदरक की चाय पीयें और कुछ ही मिनिटों में आपकी थकान दूर हो जायेगी। इसका स्वाद तभी अच्छा आता है जब इसे अच्छी तरह कद्दूकस करके या कूटकर 10-15 मिनिट तक उबाला जाये। 4.  यदि प्रतिदिन सुबह उठकर एक टीस्पून दालचीनी के पाउडर को शहद और पानी के साथ लिया जाए तो इससे थकान से छुटकारा मिलता है। आपको कुछ ही सप्ताह में इसका प्रभाव

डेंगू के लक्षण, कारगर घरेलू नुस्खे

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डेंगू एक ऐसा वायरल इन्फेक्शन है जिससे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। यह वायरस मच्छरों से फैलता है। यह एडीज नामक मादा मच्छर फैलता है जो साफ पानी में पनपते हैं। डेंगू एक खतरनाक बीमारी है और इसका इलाज करना बेहद जरूरी होता है क्योंकि यह जानलेवा साबित हो सकता है। वहीं इसे ठीक करने के कुछ घरेलू तरीके भी हैं जिन्हें अपनाकर इसे ठीक किया जा सकता है। एक बार किसी व्यक्ति को डेंगू हो जाए तो ऐसा कम होता है कि वह इससे दुबारा ग्रसित हो, अगर किसी को दुबारा डेंगू होता है तो डेंगू भयंकर रूप ले सकता है। ऐसे कई घरेलू उपाय हैं जिन्हें अपनाकर डेंगू के बुखार को सही किया जा सकता है। एक आम फ्लू और डेंगू में अंतर करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इनके लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं। इसलिए हम आज आपको डेंगू बुखार के लक्षण और उसके घरेलू उपचार बताने जा रहे हैं। डेंगू बुखार के लक्षण- – तेज ठंड लगकर बुखार का चड़ना डेंगू का लक्षण है। डेंगू मच्छर के काटने के 3 से 14 दिन के अंदर इसका असर दिखता है। – सिर और आंखों में दर्द होता है। – शरीर और जोड़ों में बहुत दर्द होना। – उलटी होना और पेट खराब होना। – शरीर पर लाल धब्बे पड़

मजबूत, घने, लंबे बालों के लिये टिप्स

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हम महिलायें अक्सर ऐसी चीज़ें ढूंढती रहती हैं जिससे हमारे बालों का विकास हो, वे घने और चमकीले बने। हालाँकि सबसे बड़ी समस्या बालों के झड़ने की होती है। इसके कई कारण हैं जैसे तनाव, वंशानुगत, केमिकल्स का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करना, बालों को डाई करना तथा अन्य। बाल झड़ने से बहुत तनाव होता है। बहुत सी महिलओं को समय से पूर्व बालों के सफ़ेद होने जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। हम फिर से अपनी जड़ों की तरफ जा रहे हैं। हमने पहले आयुर्वेद से प्रारंभ किया और फिर हम केमिकल युक्त पदार्थों का उपयोग करने लगे और अब हम बालों की समस्याओं के उपचार के लिए फिर से आयुर्वेद की ओर बढ़ रहे हैं। मुझे याद है कि मेरी दादी मां कहा करती थी कि उन्होंने कभी भी शैंपू का उपयोग नहीं किया। उनकी उम्र 75 वर्ष है और उनके बाले काले हैं। उन्होंने कभी भी अपने बालों को डाई नहीं किया। स्वस्थ बालों के लिए आयुर्वेदिक हर्ब्स आयुर्वेदिक हर्ब्स के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि उनके कोई दुष्परिणाम नहीं होते। वे 100% शुद्ध और ऑर्गेनिक होते हैं और इनके बहुत अच्छी परिणाम होते हैं। यहाँ 10 उत्तम आयुर्वेदिक हर्ब्स के बारे में बता

घर बेठे आँखों के काले धब्बे को दूर करे

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कारण:  आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी और इतना काम जिसके कारण हमारी आंखों में दर्द की शिकायत होना आम बात है। लेकिन जब इन आंखों के आस-पास काले घेरे बन जाएं तो फिर वह बेहद चिंता का विषय हो सकता है। वहीं शरीर में खून की कमी के कारण भी आंखों के नीचें काले धब्बे हो सकते हैं, ये बात आप जानते हैं कि एक बार आंखों के नीचे काले धब्बे आ जाये तो आसानी से वह जाते नहीं है। इसके लिए आप एक आयुर्वेदिक उपचार अपनाये जिससे आपके आंखों के काले धब्बे दूर हो सकते है। इसके लिए आपको एक छिला हुआ कच्चा आलू पतले पट्टे (स्लाइस) बनाने के लिए। और एक छिला हुआ कच्चा आलू पीसने के लिए। और एक विटामिन का कैप्सूल (मेडिकल स्टोर से लेना है। केसे बनाये और उपयोग करे :- सब से पहले एक आलू के छोटे छोटे दो स्लाइस यानि पट्टे काट लें और सोते समय उन्हे अपनी बंद आँखों पर रख दें। अब 10 से 15 मिनट सीधे पीठ के बल लैटे रहें। उसके बाद उठ जायें और अपना चहरा ठंडे पानी से धो लें। यह प्रयोग दिन के किसी भी समय करें। अब रात को सोते समय दूसरे आलू को किसी मिक्सर में अच्छे से पीस कर उसका रस निकाल लें और फिर उस रस को किसी रुई या कॉटन के कपड़े म

गले के रोगों के उपचार

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गले का दर्द होना सामान्यतः अत्यधिक धूम्रपान शराब, पीने से, ठण्डे पदार्थें के बाद एकदम गरम पदार्थ अथवा गरम पदार्थ के बाद एकदम ठण्डे पदार्थो के सेवन से, अत्यधिक अम्ल पदार्थो के सेवन से, भीषण कब्ज से, मौसम बदलने की हवा लगने से कच्चे फल खाने अथवा क्षोभक गैसों को नाक में सूँघने या मुख मार्ग से ग्रहण करने से तथा ज्यादा बोलने से ज्यादा बोलने से आदि कारणों से गले में सूजन व दर्द होने लगता है। साथ ही थूक निगलने में दर्द होता है। लक्षण: इसके लक्षण की बात की जाय तो गले में सूजन, कण्ठ में  दर्द थूक निगलने में दर्द, कण्ठ में खुजली, कण्ठ में खुश्की, सूखी खाँसी तथा ज्वर आदि लक्षण प्रकट होते हैं। गले में सूजन होने पर कभी-कभी थूक या कफ के साथ रक्त भी आने लगता है। गला बैठना तथा स्वरभंग होना भी इसके लक्षण हैं। आयुर्वेदिक उपचार: गले के रोगों में जामुन की छाल के सत को पानी में घोलकर ‘माउथ वॉश‘ की तरह इसका गरारा करना चाहिए। स्वरभंग में अदरक के साथ गन्ना चूसना चाहिए। गले में जलन व सूजन होने पर पालक के पत्ते थोड़े पानी में उबालकर लुगदी को गले में बाँध लीजिए, थोड़ी देर में आराम आ जायेगा। गले में रू

Hyperthyroidism

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थाइरॉइड ग्रन्थि गर्दन में होती है। यह श्वास प्रणली (trachea)or स्वर यन्त्र के पास लगी रहती है। गहरे लाल रंग की 25 ग्राम भार वाली ग्रंथि है। यह निम्न हॉर्मोन स्त्राव करती हे ट्राईडोथीरोनिन (T3) or थीरोक्सिन (T4), थीरोकैल्किटोनिन etc. T3 व T4 दोनों के कार्य का परिणाम एक जैसा है 1 रक्त में ग्लुकोज की मात्रा को बढ़ाता है। 2 आंतो में ग्लुकोज अवशोषण को उत्तेजित करता है। 3 प्रोटीन व वसा से ग्लुकोज के निर्माण में सहायक । 4 शरीर की सामान्य वृद्दि , कंकाल (skeleton) की वृद्दि, sexual maturation,मानसिक विकास को प्रभावित करते है। Hyperthyroidism थायराइड की एक overproduction T3 और टी -4 हार्मोन का। थायरॉयड गण्डमाला(goiter) के रूप में लक्षण, आँखें (exopthalmos) फैला हुआ, धड़कन, अतिरिक्त पसीना, दस्त, वजन घटाने, मांसपेशियों में कमजोरी और गर्मी के लिए असामान्य संवेदनशीलता। भूख अक्सर बढ़ जाती है। thyroid चिकित्सा- 1 आरोग्यवर्धिनी वटी 2 कांचनार गुग्गुल                            दोनों 1-1गोली दिन में तीन बार कुनकुने पानी से। 3 गिलोय घन वटी 2-2 गोली   सुबह शाम 4 सर्वकल्प क्वाथ 200ग्राम

गेहूँ के जवारे का रस (Wheatgrass)

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सेहत बनाते हैं गेहूँ के जवारे  व्हीट ग्रास यानी गेहूँ के जवारे को आप जूस की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। जर्म को तेल के रूप में या फिर पावडर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका उपयोग सलाद के साथ भी किया जा सकता है। जब आप व्हीट ग्रास का जूस बनाएँ, तो ब्लैंडर को धीमा ही रखें, तेज स्पीड इसके प्राकृतिक घटकों को नष्ट कर सकती है। पाचन तंत्र ठीक रखने और त्वचा को चमकदार रखने के लिए कुछ ग्राम व्हीट ग्रास लेकर उन्हें अच्छी तरह से साफ करें। फिर धीरे-धीरे ब्लैंड करें। इसमें एक छोटा गिलास पानी डालें और ताजा ही पी लें। स्वास्थ्य और स्वाद के लिए थोड़ा-सा शहद भी डाल सकते हैं।व्हीट जर्म का तेल प्रसव के बाद के स्ट्रेच मार्क को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है। एक चम्मच व्हीट जर्म ऑइल को कैलेंड्यूला ऑइल के साथ मिलाकर प्रभावित हिस्से में हर दिन धीरे-धीरे मसाज करें।

सर्दी खाँसी जुकाम

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आयुर्वेद ग्रंथो में कास, सामान्य बोलचाल में खाँसी कहा जाता है । कारण:- जल्दी जल्दी खाने के कारण भोजन के कण या पिने के पदार्थ का आहार नली में न जा कर श्वास नली में चला जाना, रुक्ष पदार्थ का अधिक सेवन, मल, मूत्र छींक आदि के वेग को रोकना, खट्टी, कसैली वस्तु का अधिक सेवन, अधिक परिश्रम, अधिक मैथुन, ऋतू परिवर्तन,सर्दी का प्रभाव आदि। लक्षण  :- खाँसी से पूर्व मुँह में तथा कंठ में काँटे सी चुभन होती है, किसी वस्तु को निगलने पर दर्द। वातज कास होने पर- ह्रदय, कपाल, कंठ, सिर,छाती में दर्द, स्वर का फटा फटा निकलना, बिना कफ की खाँसी यदि कफ निकलता भी है तो बड़ी कठिनाई से| वातज कास को सुखी खाँसी भी कहा जाता है। पित्तज कास में - पिले रंग का,पित्त मिला हुआ, मुँह सुखा, कड़वा और चरपरा हो जाता है । प्यास अधिक लगती, तन्द्रा,निद्रा अधिक आती है गले या कंठ में जलन और हल्का बुखार लक्षण मिलते है । कफज कास में-अग्नि का मंद होना, अरुचि, वमन, जुकाम, मुँह स्वाद का मीठा,कंठ में खुजली का अनुभव, अत्यधिक खाँसने पर गाड़ा कफ निकलना । क्षयज कास में -(राज्य यक्ष्मा TB के लक्षण ) क्षतज कास किसी चोट या अधिक परिश्र

सियाटिका (Sciatica)

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Sciatica  is lower back and leg pain. It  is a medical condition characterized by pain  going down the leg from the  Lower back  . This pain may go down the back, outside, or front of the leg. Typically, symptoms are only on one side of the body. Certain causes, however, may result in pain on both sides. Lower back pain  is sometimes but not always present. Weakness or numbness may occur in various parts of the affected leg and foot . एड़ी तथा प्रत्येक पेरो की उंगलिओ की कण्डराये वात दोष से प्रकुपित होती है तथा टांगो के फैलाओ को रोक देती है इस रोग को गृधसि ( सियाटिका ) कहते है। सियाटिका नाडी नितम्ब से पैर तक जाती है तथा उसमे वातरक्त , मधुमेह , पसीने में ठंडी हवा लगाना, चोट, मोच, आदि कारण से पीड़ा नितम्ब से नीचे पैरो तक जाती है। चिकित्सा  :- 1. वात गजांकुश रस -1 गोली     पीपली चूर्ण         -100मिली ग्राम (चुटकी भर)     मंजिष्ठा क्वाथ     - 20 मि.ली.+ 20 मि.ली.                                     कुनकुने पानी के साथ। 2. महावात विधंसक रस -  65 मि.ली.     आम का मुरब्बा   

माइग्रेन दर्द (migraine Pain)

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"  A useful definition of migraine is a recurrent syndrome of headache,nausea,vomiting and other symptoms of neurological ." Ayurveda acharya charaka and other say that shoka and bhaya are specifically responsible for shirahshoola {Ch.su.17/17, Ha. 2nd part 1/10}.  आयुर्वेद में इसे अर्धावभेद कहा गया है।   माइग्रेन के लक्षण - मनुष्य के सिर  में अत्यधिक करके पीड़ा , सर फोड़ने की सी पीड़ा, सुई चुभने सी पीड़ा, भ्रम (चक्कर आना ), शूल इत्यादि लक्षण अकस्मात  ३ दिन, ५ दिन,  १० दिन, १५ दिन और एक माह में कभी भी आ जाते है।   चरक ने  रुक्ष ,अत्यधिक भोजन, ओस  और अधिक मैथुन, वेग धारण (मल,मूत्र काम,क्रोध), श्रम और व्यायाम आदि  के कारण वायु अकेला या दोषो को साथ ले कर इस रोग की उत्पत्ति करता है।   Treatment :-  1 Mahavatvidhvansak ras (महावतविध्वंसक रस ) - 1 tab. BD with honey. 2 Sutshekhar ras (सूतशेखर रस ) - 1 tab BD with milk and mishri (suger candy white).

त्रिफलादि क्वाथ

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त्रिफलादि  क्वाथ :- हरड़, बहेड़ा, आँवला, गिलोय, कुटकी, नीम की छाल, चिरायता, वासा-  ये प्रत्येक ३-३ माशा लेकर इनका यवकूट चूर्ण करें, पश्चात  इनको १ पाव पानी में पकावे, आधा पाव पानी शेष रहने पर उतार कर छान ले और मिश्री मिलाकर दिन में दो तीन बार पिलावे / पिये। गुण और उपयोग :- ये क्वाथ का सेवन करने से समस्त प्रकार के कठिन पाण्डु रोग, कामला और हलीमक रोग नष्ट होते है। विशेष रूप से पित्त विकृतिजन्य पाण्डु, कामला और दूषित जल के पीने से उत्त्पन्न हुआ पाण्डु, कामला रोग भी शीघ्र  नष्ट होता है।   

Spondylosis (Cervical/Thoracic/Lumbar) and PID.

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The Vertebral disc lesions affect nearly 80% of the people.Spondylosis (Cervical/Thoracic/Lumbar) and PID. It is the most common causes of job related disability leading to missed work and the second most common neurological ailment. Raised incidence of these disorders are observed probably resulted from extensive vehicular riding, uneven roads, irregular dietetic habits , irregular postures, insufficient sleep, injuries to vertebras, leads to loss of cushion action in between vertebral bodies. Many times patients get moderate to severe pain in lumbar or cervical region. It affects day to day activities and also leads to incurable problems like spondylolithiasis, spinal canal stenosis, sacralization, CaudaEquina Syndrome etc. In charak samhita sutra sthan the  Samshodhan Chikitsa has been mentioned. Ayurveda management of vertebral disc lesions by panchkarma  therapies and herbomineral formulations.This attempt possibly finds solutions which can delay or even prevent surgical inte

पुष्पधन्वा रस बल्य और वाजीकारक।

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यह रसायन बल, वीर्य, कामोत्तेजक और शक्तिवर्धक एवं उत्तम वाजीकारक है। इसके नियमित सेवन से वीर्यस्राव, वीर्य विकार, ध्वजभंग, बन्ध्त्व दोष आदि रोग नष्ट होते है। यह रस स्त्रियों के बीजाशय (uterus) के योग्य विकास न होने से  उत्पन्न बन्ध्त्व दोष और पुरुषों के शुक्रस्त्राव की दुर्बलता से पैदा हुई नपुंसकता की अव्यर्थ औषधि है । ज्यादा स्त्री प्रसंग करने से शुक्र (वीर्य ) पतला हो जाता है । ऐसे समय में उत्तेजना ( काम की इच्छा ) होने पर सिर में दर्द होने लगता है और यह दर्द तब तक होता रहता है; जब तक वीर्यस्राव नहीं हो जाता है । जैसे पुरुषो को कभी मनोव्याघात या और भी किसी आकस्मिक दुर्घटना के कारण स्त्री-प्रसंग करने की इच्छा नहीं होती; उसी तरह कभी कभी स्त्री को भी यह शिकायत हो जाती है।       इस रसायन में :- रस सिंदूर - बलवर्धक, उत्तेजक और योगवाही है। नाग भस्म - स्तम्भक, बल्य और मेहनाशक है। अभ्रक भस्म - मानसिक कष्ट से उत्त्पन्न हुए मनोविकार नाशक, धातुओं को परिपुष्ट करनेवाला, योगवाही और रसायन है।

चश्मा उतारने और नेत्र ज्योतिवर्धक योग

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चश्मा उतारने और नेत्र ज्योतिवर्धक योग, इस योग को कुछ समय लेते  रहने से ही आखों की सभी समस्या दुर हो जाती है। विधि :- बडी हरड़ 10  ग्राम, बहेडा 20 ग्राम, आवंला 30 ग्राम, मूलहठी 3 ग्राम, वंशलोचन 3 ग्राम, पीपर 3 ग्राम इन सब का  अलग-अलग बनाया चुर्ण में 150 ग्राम मिश्री मिला लें । फिर इस मिश्रण 10 ग्राम देशी घी मिला लें । आवश्यकतानुसार शहद मिलाए कि चाटने अवलेह अर्थात चटनी बन जाये । इस अवलेह को काँच की बरनी में रख लें । इसे 6 ग्राम रात को सोते समय लें।

भस्मक रोग या अधिक खाना (OVEREATING)

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भस्मक रोग एक ही प्रकार का ऐसा रोग है जिसमे रोगी हर समय खाता रहता है, रोगी जितना भी खाना खा ले उसे ऐसा लगता है कि उसने अभी तो कुछ भी नहीं खाया है और वह  बहुत अधिक खाने लगता है। यह किसी भी व्यक्ति ( युवा, बूढे, बच्चे, और महिला  ) और किसी भी उम्र में हो सकता है। इस रोग के उपचार हेतु भस्मकनाशक चूर्ण का प्रयोग करे । भस्मकनाशक चूर्ण विधि :-                                        हरड़, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, बायबिडंग, पीपल, मिश्री और अपामार्ग के बीज इन ८ औषधियों  को समभाग मिलाकर बारीक़ चूर्ण करें लें। मात्रा :- ५ ग्राम  से  १० ग्राम तक शहद और घृत विषम मात्रा में दिन में दो बार चाट ले। नोट :- यह चूर्ण अमाशय पर अवसादक असर पहुँचता है, जिससे बढ़ी हुई अग्नि कम होकर भस्मक रोग शांत हो जाता है।