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सदैव युवा रहेंगे आप। (All time Young)

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संपूर्ण शरीर का कायाकल्प  करे इस आयुर्वेदिक चूर्ण से, जो कि आपको देगा रोगों से लड़ने की क्षमता। छोटी आयु में  झड़े बालो को पुनः एवं  समय से पहले हो गए सफ़ेद बालों को काला करता है। इसके प्रयोग से ढीले दांत  मजबूत होते। हर समय चेहरे पर कांति रहती है। { The rejuvenation of the body to the Ayurvedic powder, which will give you the ability to fight disease. Sto od at an early and age and premature hair re-grown white hair is black. Its use of loose teeth strong. Every time there is a glow to the face.} ये चूर्ण पूजनीय आचार्य की द्वारा आजमाया और निस्वार्थ सेवा लिए प्रकाशित किया गया है । चूर्ण बनाने की विधि :- १ सूखा आवला चूर्ण १०० ग्राम २ काले तिल { साफ किये } १०० ग्राम ३ भृंगराज { भांगरा} चूर्ण १०० ग्राम ४ गोखरू चूर्ण १०० ग्राम इस सुब को बराबर मिला कर उसमें ४०० ग्राम पिसी हुई मिश्री मिला ले। उसके पश्च्यात उसमे १०० ग्राम शुद्ध गो घृत { घी } और २०० ग्राम शहद मिला कर कांच या चीनी के बर्तन में रख लें। एक एक चम्मच खाली पेट रोजाना प्रातः साय तीन माह प्रयोग करे।

धनिया के फायदे { CORIANDER BENEFITS }

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धनिया आयुर्वेद में लघु, स्निग्ध गुण, कषाय, तिक्त, मधुर रस, उष्ण वीर्य, मधुर विपाक है। Urinary system  improves करता है, और  heart and circulatory system को मद्दत करता है। Dhania is also well known for its anti diabetic, hyperlipidemia properties. it induces mental relaxation. धनिया के फायदे :- १- जोड़ो के दर्द में - {आमवात की शुरुवात में } सुखा धनिया भून कर पाउडर कर ले उसमे बराबर मात्रा में            मेथी पाउडर और अजवाइन मिला कर सुबह शाम ३ ग्राम की मात्रा में ले। २- अम्लपित्त या पेट में जलन हो या गले में जलन खट्टी डकारे आये तो दो भाग मिश्री पाउडर और एक भाग       धनिया पाउडर सुबह शाम ले।     सामान्य तौर  पर रोगों का मूल करण कब्जियत रहता हे यदि ऐसी स्थिति हो तो त्रिफला या इसबगोल की भूसी     का प्रयोग करे। ३- बच्चो की खाँसी  में भुने धनिये का पाउडर शहद से चटाये। ४- पसीने की दुर्गन्ध हो या मुँह की दुर्गन्ध हो सूखे धनिये के ४-५ दाने चूसने से लाभ मिलता है।

थोड़ी थोड़ी मात्रा में बार बार रुक रुक कर मूत्र आता है ? { Urine incontinence,मुत्रातीत }

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मुत्रातीत  जो व्यक्ति मूत्र के उत्पन्न हुए वेग को रोककर थोड़े समय बाद फिर से मूत्र त्याग करना चाहता है तब मूत्र प्रवाहित नहीं होता है और यदि वह जोर लगा कर मूत्र त्यागना चाहता है तो किसी प्रकार प्रवर्तित होता है, किन्तु इस प्रकार बार बार प्रवाहण करने से मंद वेदना सहित तथा थोड़ी थोड़ी मात्रा में बार बार रुक रुक कर मूत्र आता है।  च.सि.अ. अनुसार अधिक समय तक मूत्र को रोकने से मूत्रत्याग करने पर मूत्र जल्दी नहीं आता । यदि आता भी तो बहुत धीरे धीरे। इस अवस्था को मुत्रातीत कहते है।  आधुनिक दृष्टि से इस रोग को अपूर्ण मूत्रावरोध { Partial retention of urine or Incontinence of urine} कहते है।  चिकित्सा :- १ सामान्य वातहर एवम वातानुलोमन क्रिया।  २ मूत्रावरोध होने पर आवश्यकतानुसार उत्तरबस्ती, शल्यकर्म एवं शल्यहारण। ३ आहार में जल,लवण, प्रोटीन की मात्रा का नियंत्रण। ४ चंद्रप्रभावटी ४ वटी  प्रायःसाय।  ५ पुनर्वामण्डुर   ४० ग्राम      प्रवालपिष्टी     ८  ग्राम         अभ्रक भस्म    ८ ग्राम      मिला कर ४० पुड़िया बनाकर १-१  प्रातःसाय मधु से  ६ चन्दनबलालाक्षादि  तैल  से मालिश करे.