वातरक्त (Gout)

इस रोग में वात की प्रधानता रहती है । दूषित रक्त वात से मिल जाता है, उसे वातरक्त कहते है।

कारण :- आहार विहार का मिथ्या प्रयोग , रात्रि जागरण , दिन में सोना (शयन) , अजीर्ण भोजन , अधिक पैदल चलना , मछली , शराब , सुखा मांस , खट्टे , चरपरे , गरम , चिकने तथा नमकीन पदार्थ का अधिक सेवन हाथी - घोड़े की सवारी आदि कारणों से वायु और रक्त दोनों कुपित हो जाती है ।

लक्षण :- इस रोग के प्रारंभ में अधिक पसीना या बिल्कुल कम पसीना आना , फोड़े फुंसी निकलना , भारीपन , मेद वृध्दि , खुजली , चकत्ते पड़ जाना , दाह हो कर शांत हो जाना , शोक , जंघा में कमजोरी । यह रोग पांवो की जड़ से और कभी कभी हाथो की जड़ से उठकर संपूर्ण शरीर में फेल जाता है ।

चिकित्सा :-
1 योगराज गुग्गुल 2 गोली गिलोय के क्वाथ से

2 चोपचिन्यादि चूर्ण  3 ग्राम भोजन के 1 घंटे पूर्व

3  आरोग्यवर्धनी वटी  3 गोली रात को

4  महामंजिष्ठारिष्ट   20 ml और 20पानी भोजन के बाद ।
 

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